शनिवार, 26 मार्च 2011

एक फूल की बात...


बगीचे में एक फूल खिला. हवा के झोंकों ने उसकी खुशबू चहुँ दिशि बिखेर दी. भौरों और तितलियों में तो जैसे उस फूल की करीबी पाने की होड़ लग गई. बगीचे में आने वाले मनुष्यों को भी फूल की ताजगी और खुशबू ने आकर्षित किया. जो भी उस फूल को देखता, देखता ही रह जाता. उस शाम बगीचे में उस फूल को देखने के लिए शहर भर की भीड़ आयी. कुछ उत्साही नौजवानों ने उस बगिया के माली की तारीफ़ की. नौजवानों को तारीफ करते देख, बुजुर्गों ने भी माली की तारीफ की. बुजुर्गों को तारीफ करते देख, बच्चों ने भी माली की तारीफ की. तारीफ की बात जब एक कलाकार ने सुनी, तो उसने भी फूल को एक नज़र देख, माली के सम्मान में कसीदे पढ़े. राजनीतिक दलों ने भी माली को अपने-अपने मंच पर सम्मानित करने की घोषणा की. एक व्यक्ति ने माली की इसलिए खिचाई की कि उसके हिसाब से फूल सही ढंग से नहीं खिल पाया था और क्योंकि माली ने समुचित तकनीक से उस फूल के पौध की देखभाल नहीं की थी, इसलिए फूल समय से पहले और कम-खूबसूरती में खिल पाया था, इस वजह से उस फूल को उतना 'अटेंशन' नहीं मिल पाया, जिसका वह फूल हक़दार था. इस तरह कुछ मनुष्यों ने फूल को भुलाकर माली की तारीफ या फिर निंदा में ही दिन बिता दिया. दिन ढला तो फूल भी मुरझा गया. लेकिन  मुरझाने के पहले फूल सैकड़ों लोगों की साँसों को महका गया था, उन लोगों की साँसों को भी, जो माली की तारीफ और निंदा में मस्त थे. यह बात और है कि तारीफ और निंदा करने वालों ने फूल की खुशबू को महसूस करने की बजाय, माली को तरजीह दी थी...

खान-पान के अहम् फाल्गुन नियम

प्रतीकात्मक पेंटिंग : पुष्पेन्द्र फाल्गुन  इन्टरनेट या टेलीविजन पर आभासी स्वरुप में हो या वास्तविक रुप में आहार अथवा खान-पान को लेकर त...