उनके लिए शौक़-ए-इज़्हार है हुनर
मेरी तो ज़िन्दगी की अब्सार है हुनर
कितने ही सवालात जीता हूँ, पीता हूँ
मेरे लिए होता हुआ एतबार है हुनर
मुकम्मल का हिस्सा तुम्हें लगता हूँ
मेरे हिस्से-हिस्से में यलगार है हुनर
ओट से देखने की फितरत क्यों पालें
जब बेजल्व-ए-कराती दीदार है हुनर
यही ख़ुशफ़हमी उन्हें देती तसल्ली है
कि फ़ुवाद सा हमारा बे ज़ार है हुनर
मिलेंगे उनसे तो बतायेंगे ये फाल्गुन
कि प्यार की ही तरह मेरा यार है हुनर
- पुष्पेन्द्र फाल्गुन
इज़्हार = अभिव्यक्ति
अब्सार = आँख
एतबार = भरोसा
मुकम्मल = संपूर्ण
यलगार = विद्रोह
फितरत = प्रवृति
बेजल्व = बिना दिखावे के
दीदार = दर्शन
फ़ुवाद = हृदय, दिल