सोमवार, 29 जुलाई 2019

खान-पान के अहम् फाल्गुन नियम

प्रतीकात्मक पेंटिंग : पुष्पेन्द्र फाल्गुन 
इन्टरनेट या टेलीविजन पर आभासी स्वरुप में हो या वास्तविक रुप में आहार अथवा खान-पान को लेकर तोता रटंत दोहराव ही दिखाई देते हैं. हम जो भी खाते या पीते हैं उसका हमारे शरीर पर वात-पित्त-कफ के स्वरुप में ही दोष उत्पन्न होता है और कुछ नहीं. शरीर के किसी भी अवयव में, रक्त में, मास-मज्जा या मेरु में जितने भी रोग होते हैं उन सभी के मूल में वात-पित्त-कफ ही है.
#वात_पित्त_कफ
हमारे मनीषियों ने ऋतुओं के साथ-साथ तिथि और वार के हिसाब से खान-पान के नियम सुझाए थे. तय है कि यह किसी एक विद्वान् द्वारा बनाए नियम नहीं थे और किसी एक खास अवधि में या फिर सीमित अवधि के लिए नहीं बनाए गए थे. मैंने इन सभी नियमों का कई-कई बार अध्ययन किया और मूल निकष पर पहुँचा. मूल निकष यही है कि हमारे खान-पान ऐसे हों कि जिससे शरीर में वात-पित्त-कफ के त्रिदोष उपद्रव न करने पाएं.
#कहाँ_से_क्या_क्या
सबसे पहले खान-पान में प्रयुक्त कुछ तत्वों को समझिए, जैसे, हम जो भी खाते हैं वह तो बेलवर्गीय है या पौधे पर उगने-लगने वाला या फिर जमीन के भीतर उपजने वाला कंद-मूल. हैं न!
दूसरा, हम ऐसी चीजें भी खाते हैं जो पशुधन से हम तक पहुँचता है, जैसे दूध, अंडा या मांस.
तीसरी बात पेय पदार्थ से जुडी है, पीने के लिए हम पानी, शरबत, शराब जैसी चीजों का इस्तेमाल करते हैं.
#नियमन
चन्द्रमा की दशा पर तिथियों का निर्धारण है. प्रतिपदा से अमावस्या या प्रतिपदा से पूर्णिमा. हैं न!
पूर्णिमा का मतलब उस रोज चन्द्रमा धरती के बहुत करीब होता है. अमावस्या मतलब चन्द्रमा धरती से ज्यादा दूर होता है. मनीषियों ने पाया कि इन दोनों ही अवस्था में मनुष्य का मन बेहद विचलित हुआ करता है, इसलिए इस समय पर स्निग्धता देने वाले चीजों के सेवन को वर्जित किया, जैसे अमावस्या-पूर्णिमा पर तेल, तिल या दही के इस्तेमाल से बचने की सलाह. मतलब कि पाचन में जो-जो भी चीजें भारी होती हैं, उसका सेवन नहीं करना चाहिए. मैं इस नियम को इस तरह समझ पाया, दरअसल, कृषि आधारित व्यवस्था में एकादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी और अमावस्या या पूर्णिमा पर परिश्रम क्रमशः शिथिल होता जाता था. भारतीय उपमहाद्वीप में कृषि पद्धति चन्द्र की स्थिति पर निर्धारित थी, इसीलिए एक मास / महीने के आठ रोज शिथिल घोषित किए गए थे, उन आठ दिनों में गरिष्ठ यानी पचाने में समय लेने वाले पदार्थों के सेवन को त्याज्य बताया गया. इधर के कुछ विद्वानों ने जब देखा कि तिथि के अनुसार खान-पान के निर्धारण को लेकर जब वे फंस रहे हैं तो उन्होंने उन आठ दिनों के साथ इतवार को भी जोड़ दिया. खैर, यह बात समझने वाले समझ ही जाएँगे.
बहरहाल! मैं जितना समझ पाया कि प्राचीन विद्वानों से लेकर वर्तमान आहार विशेषज्ञ सब जो कहना चाहते हैं वह यह है -
#जब भी खाली पेट ज्यादा समय तक रहें उसके बाद कभी भी बेलवर्गीय उपज जैसे कद्दू, लौकी, तुरई आदि न खाएं.
#बेलवर्गीय उपज जब भी खाएं तो उसके अगले रोज या उस रोज भी फल जरुर खाएं, ध्यान रखें कि फल मतलब फल. फल जब खाएं तो उसके अगले रोज बेलवर्गीय उपज नहीं बल्कि #फसलीय उपज जैसे बैंगन, भिन्डी आदि जरुर खाएं, फिर उसके अगले रोज बेलवर्गीय उपज. क्रम समझ लीजिए, बेलवर्गीय उपज, उसके अगले रोज केला आदि फल, फिर बैंगन, भिन्डी, परवल आदि सब्जी. इस क्रम को कभी नहीं बदलना चाहिए. किसी कारण से यदि यह क्रम चूक जाए या टूट जाए तो एक दिन का अन्तराल रखें और उस दिन ने बेलवर्गीय कुछ खाएं, न फल और न फसलीय कुछ. उस रोज प्याज-नमक से काम चलाएं.
एक बात और ख्याल रखें कि विद्वानों और आहार विशेषज्ञों की नजर में बेल और नारियल भी फल हैं.
#गरु_बनाम_पुष्टि
जब भी दही-घी आदि का सेवन करें उसके अगले रोज बेलवर्गीय कोई भी चीज न खाएं, बल्कि फल आदि खा सकते हैं. दही-घी के बाद कम से कम ३६ घंटे तक कद्दू, लौकी, मूली, गाजर, आलू, प्याज, लहसुन, अदरक के सेवन से बचना चाहिए. न तो दही के साथ यह सब खाना चाहिए और न ही खाने के कम से कम ३६ से ४८ घंटे बाद तक. फल के भरपूर सेवन के पश्चात भी एकदम से बेलवर्गीय चीजों पर नहीं जाना चाहिए, पहले फसलीय और फिर बेलवर्गीय, फिर फल, फिर फसलीय...
#ताड़वर्गीय
बेल, नारियल, ताड़ आदि फलों के सेवन लिए भी खास नियम हैं. जब भी इस वर्ग के फल खाएं कसैली चीजों का सेवन न करें, यानी बेल, नारियल आदि खाने के बाद कभी भी करेला, आंवला जैसे पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए. यही नहीं ताड़वर्गीय के साथ ताड़वर्गीय नहीं खाना चाहिए, मतलब नारियल के साथ बेल या बेल के साथ नारियल यानी आज नारियल खाए तो कल बेल नहीं खाना है या फिर आज बेल खाए तो कल नारियल नहीं.
#नींबूवर्गीय
संतरा, मोसंबी, नींबू सबकी एक ही प्रजाति है. नींबूवर्गीय के साथ कभी दही या तिल का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. कई लोग दूध में नींबू डालकर उसे फाड़ते हैं और दही-पनीर आदि बनाते हैं. नींबू से फाड़े गए दूध से बनी दही-पनीर खाने से पित्त के साथ कफ भी इतना बढ़ जाता है शरीर में कि जिससे शरीर में पहले से रहने वाले कैंसर के जीवाणु बेहद संगठित तौर पर सक्रिय हो जाते हैं.
#अंतिमबात
चबाकर खाने वाली चीजों को खूब चबाकर मतलब प्रति कौर ३२ बार जरुर चबाना चाहिए. दिन में कम से कम चार बार जरुर कुछ न कुछ पाचक खाना या पीना ही चाहिए. दो बार के खाने के बीच छह घंटे से ज्यादा का अन्तराल नहीं होना चाहिए. कुछ और न खा पाए तो एक धेला गुड खाकर भरपेट पानी पी लेना चाहिए. यह जरुर ध्यान में रखिए कि कभी भी सिर्फ पानी नहीं पीना चाहिए, प्रत्येक बार पानी पीने के पहले मुँह में जरुर कुछ चबाकर खाना चाहिए.
पुष्पेन्द्र फाल्गुन फाल्गुन विश्व

रविवार, 28 जुलाई 2019

पत्तल में भोजन के कुछ रोचक तथ्य फाल्गुन के नजरिए से...

तस्वीर गूगल फोटोस से साभार 
पत्तल में भोजन से सेहत सुधरेगी और आपका आरोग्य बढ़ेगा, साथ ही लुप्त हो चुके इस व्यवसाय के जरिए अनेक लोग गृह उद्योग को आजीविका का साधन बना पाएंगे... इन्टरनेट पर इस सम्बन्ध में खूब प्रचार किया जा रहा है, यह अच्छी बात है लेकिन सही तरीके से इस बाबत न बताने के कारण लोग दरअसल इसके उपयोग को उतना तवज्जो नहीं दे रहे हैं, जितना इसे मिलना चाहिए... मैं एक विनम्र कोशिश कर रहा हूँ...
हमारे देश में कभी ढाई हजार से अधिक वनस्पतियों की पत्तियों से तैयार किए जाने वाले पत्तलों और उनसे होने वाले लाभ के विषय में परंपरागत ज्ञान उपलब्ध है. हमारी परम्परा की हर क्रिया-प्रक्रिया आरोग्य और स्वास्थ्य की दृष्टि से शामिल रही है, दुर्भाग्य से अंग्रेजी शिक्षा और संस्कृति ने हमें अपनी परम्पराओं से पूरी तरह न सिर्फ दूर कर दिया है बल्कि हम अपनी परंपरा से ही घृणा करने को प्रगतिशीलता समझने लगे हैं. बहरहाल, इस समय हमारे देश में केले की पत्तियों के आलावा सुपारी की पत्तियों से बने पत्तल पुनः अपनी जगह समाज में वापस बना रहे हैं.
दक्षिण भारत में केले की पत्तियों पर भोजन परोसने का नियम रहा है, आज भी इस रीति का पालन वहां होता है, पत्तल या पत्तियों में खाने का क्या फायदा है यह किसी भी मँहगे होटल में जाकर देखिए, वहां खाना केले के पत्तों या फिर सुपारी के पत्तलों में परोसने का चलन बढ़ रहा है. जर्मनी जैसे अतिविकसित देश तो अब पत्तल में खाना खाने को राष्ट्रीय दायित्व की तरह प्रचारित कर रहे हैं.
कुछ बातें पत्तल या पत्तियों पर भोजन के विषय में आपको जरुर जानना चाहिए...
#पलाश के पत्तल में भोजन करने से हमारा पाचनतंत्र मजबूत होता है और यदि पाचन तंत्र की कोई भी बीमारी हो तो वह महज चालीस दिनों तक पलाश के पत्तल पर रोजाना खाना खाने से ठीक हो जाएगी. यह दावा नहीं है, आप इसका प्रयोग कर देखिए और फिर खुद दावे करने लगेंगे.
#पलाश के पत्तल की और विशेषता है, वह यह कि यह रक्त भी शुद्ध करता है लेकिन इसके लिए सफ़ेद फूल वाले पलाश के पेड़ का पत्तों से बनी पत्तल का इस्तेमाल करना चाहिए या फिर रेतीले क्षेत्र में होने वाली पलाश के पत्तों की पत्तल इस्तेमाल करनी चाहिए. लाल पलाश के फूल वाले पेड़ की पत्तल मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड में बहुतायत से इस्तेमाल होती रही है. सफ़ेद फूल वाले पलाश के पेड़ के पत्तों से बनी पत्तल पर यदि बवासीर (पाइल्स) का रोगी नब्बे से एक सौ बीस दिनों तक नियमित दोनों जून भोजन करे तो उसका बवासीर हमेशा- हमेशा के लिए ठीक हो जाता है, यहाँ तक कि मस्से भी गलकर गिर जाते हैं.
#सुपारी के पत्तों से बने पत्तल में भोजन करने से चाहे किसी भी तरह का रक्तदोष हो, पैंतालिस से पचपन दिन में ठीक हो जाता है, जिन महिलाओं को श्वेतप्रदर (सफ़ेद पानी) की शिकायत होती है, उन्हें सुपारी के पत्ते से बने पत्तल पर खाने से बहुत फायदा होता है, महिलाओं की अनियमित मासिक पारी और जब यह पारी बंद होने वाली रहती है तब यदि नियमित सुपारी के पत्ते से बनी पत्तल पर भोजन किया जाए तो बहुत फायदा होता है. एनीमिया में भी इस पत्तल पर खाने से क्या फायदा होता है, इस रोग से पीड़ित खाएं और पूरी दुनिया को बताएं. इतना ही नहीं, अवसाद और मानसिक तनाव से निजात के लिए सुपारी के पत्ते से बने पत्तल पर ही भोजन करना-कराना चाहिए.
#करंज के पत्तों से बनी पत्तल भी बवासीर के लिए रामबाण मानी जाती है. करंज के पत्तों से बनी पत्तल को जोड़ के दर्द से छुटकारा दिलाने वाला माना जाता रहा है. मनुष्य के शरीर से अतिरिक्त अम्ल सोखने में इस पत्ते के पत्तल का कोई तोड़ नहीं है.
#केले के पत्ते पर भोजन करने से शरीर में कभी सूखा रोग नहीं होता और हड्डियों तथा मांसपेशियों से जुड़ी हर दिक्कत ठीक होती है, लेकिन यदि किसी को इस समय फेफड़े से जुड़ा कोई रोग है तो उसे पहले पलाश के पत्तल पर भोजन करना चाहिए और करीब तीन महीने तक पलाश के पत्तल के नियमित प्रयोग के बाद ही केले के पत्ते पर भोजन करना चाहिए, कभी-कभार केले का पत्ता इस्तेमाल करने में कोई हानि नहीं है.
#गिलोय के पत्ते से बने दोने में पानी या चाय पीने से लीवर की सूजन समाप्त हो जाती है और पाचन क्षमता बढ़ने लगती है.
#बंगला पान के पत्तों से बने दोने में शहद और अदरक के रस के साथ पानी पीने से गंभीर से गंभीर हृदय रोग एक सौ बीस दिन में जड़ से समाप्त हो जाते हैं.
ऐसे न जाने कितने ही उपहार प्रकृति ने हमें दिए हैं. आप में से कोई चाहे तो किसी तरह के शिविर आदि का आयोजन कर मुझे आमंत्रित करे, मैं इस विषय पर पूर्ण अधिकार के साथ घण्टों मार्गदर्शन कर सकता हूँ. विशेष परिस्थितियों में निजी परामर्श के लिए भी उपलब्ध होता हूँ.
पुष्पेन्द्र फाल्गुन फाल्गुन विश्व

वर्षा ऋतु के लिए फाल्गुन टिप्स...

फोटोग्राफ : अरुणेन्द्र मिश्र 
कुछ मित्रों ने कहा कि वर्षा ऋतु में किस तरह से प्राकृतिक जीवन शैली अपनायी जाए ताकि सपरिवार सेहतमंद रहते हुए इस मौसम में होने वाले रोगों से बचा जा सके. वैसे भी पिछली दो रात से बादल लगातार झड़ी लगाए हुए हैं.
जितनी मेरी समझ है उसके अनुसार निम्न तरीके से आहार-विहार और जीवन रहे तो सेहत और प्रसन्नता दोनों अक्षुण्ण रहेंगे...
#दक्षिणायन
इस समय सूर्य दक्षिणायन हैं, मध्य जुलाई से 21 दिसम्बर तक सूर्य दक्षिणायन रहते हैं, अतः चन्द्र ज्यादा बलवान हो जाते हैं. हमारे समस्त प्राचीन ग्रंथों में श्रावण से कार्तिक तक दूध और दूध से बने पदार्थों से परहेज इतने सकारात्मक तरीके से कराया गया है कि आमजन परहेज भी कर लें और उन्हें समझ भी नहीं आए कि दूध अथवा दूध से बने पदार्थों से उन्हें बचाने की कोई शास्त्रीय कवायद हो रही है. याद कीजिए कि कितने तीज-त्यौहार जुलाई से दिसम्बर के बीच भारतीय उप महाद्वीप में हैं और दूध का इन त्योहारों में किस तरह और कितना-कितना इस्तेमाल है. कहने का मतलब कि आज से दिसम्बर तक दूध से जितना हो सके परहेज करिए. दूध, दही, छाछ जैसे पदार्थ से बचने की सलाह होती है लेकिन पुराना घी इस समय बहुत लाभकारी होता है, लेकिन घी कम से कम १२ साल पुराना हो तो श्रेयस्कर है, हालाँकि आज के समय में इतना पुराना घी मिलना, अंधे को आँख मिलने जैसा है, लेकिन यदि पुराना घी न भी मिले तो भी हमेशा घी गर्म ही इस्तेमाल करना चाहिए. जिन्हें फेफड़े या श्वसन रोग हैं उन्हें दूध और दूध से बने प्रत्येक पदार्थ के साथ घी से पूरी तरह परहेज करना चाहिए.
#मच्छर
पूरे साल में सूर्य के दक्षिणायन काल में सबसे ज्यादा कीट-पतंगे उत्पन्न होते हैं. मच्छर भी एक कीट है. औषधि विक्रेताओं और आधुनिक चिकित्सकों को तो जैसे इन मच्छरों ने रामबाण प्रदान कर दिया हो, बहरहाल, विषय परिवर्तन से बचते हुए यहाँ मैं यही कहना चाहता हूँ कि मच्छरों से बचने के लिए रासायनिक तरीकों जैसे कॉइल या लिक्विड रेपेल्लेंट के इस्तेमाल से यदि बचा जा सके तो बेहतर होगा. मच्छर भगाने के लिए नीम्बू और लौंग का इस्तेमाल कीजिए. नीम्बू काटकर उस पर दो लौंग रख दीजिए जहाँ से मच्छरों के आने की आशंका आपको लगती है और फिर देखिए कि क्या होता है!
#कसैला_और_नमकीन
आहार में पुराने चावल से बना भात या पुराने गेंहू से बनी रोटी ही खानी चाहिए. नाशपाती, करेला, गुड़ और अदरक प्रतिदिन के भोजन में किसी न किसी तरह से होना ही चाहिए. देखा गया है कि बारिश होते ही पकौड़े तलने और खाने का चलन बन-बढ़ गया है, लेकिन बेसन इस मौसम में बेहद नुकसानदायक है, तले पदार्थ भी जितना हो सके टाले जाने चाहिए. लेकिन फिर भी यदि मन नहीं मानता है तो तलने के पहले तेल में मेथी के दाने डालकर कुछ देर पकाना चाहिए, फिर चाहें तो मेथी के दाने रहने दें और उसी में पकौड़े तल लें लेकिन यदि ऐसा लगे कि मेथी के दाने निकाल देना चाहिए तो जरुर छन्नी से मेथी दाने किसी कटोरी में निकाल लें और फिर उन दानों को बाद में सब्जी बनाने में इस्तेमाल कर लें, मेथी के दाने जब कुछ देर तेल में पक जाते हैं तो तेल का लिनोलिक एसिड बहुत हद तक पतला हो जाता है जिससे शरीर को नुकसान कम से कम होता है. यदि नारियल या फिर जैतून के तेल में सूर्य के दक्षिणायन रहते कुछ भी तला या पकाया जाए तो फिर सेहतयाबी पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा. बेसन से बने पदार्थ ही खाने हो तो बीकानेरी पद्धति से बने नमकीन पदार्थ ही इस दौरान खाने चाहिए. एक बात और यह कि वर्षा और शीत ऋतु में नमकीन पदार्थ हमेशा शाम में ही खाना चाहिए. कसैले पदार्थ सुबह या फिर रात में ही खाने चाहिए, शाम में नहीं. एक बात और, यदि संभव हो तो इस दौरान सेंधा नमक का ही इस्तेमाल करें.
#देहदुःख
मध्य जुलाई से २१ दिसम्बर तक जितना हो सके स्त्री-पुरुष को अपने कामतत्व पर नियंत्रण रखना चाहिए. हमारे मनीषी विद्वानों ने इसीलिए वर्ष के सारे तीज-त्यौहार इसी दौरान रचे ताकि दाम्पत्य स्वरुप में पति-पत्नी जा ही न पाएं. खासकर कार्तिक पूर्णिमा के बाद ही इस स्थिति में जाने की सुविधा या सहूलियत या अवसर बन सके. दुर्भाग्य से कामतत्व को इन्हीं महीनों में बढ़ाने के लिए आज का बाजार मुस्तैद है. 'तेरी दो टकिये की नौकरी और लाखों का सावन जाए' जैसे गानों को खूब प्रचारित किया जाता है. हमारे लोक जीवन ने सेहत के महत्त्व को इतना बखूबी समझा था कि जीवन से जुड़े हर तत्व को उसी लिहाज से रेखांकित किया था. श्रावण से कार्तिक तक यदि स्त्री-पुरुष कामतत्व या दाम्पत्य सुख से परहेज करें तो न उन्हें रोग होगा न उन पर बुढ़ापा जल्दी तारी होगा. यदि आज तक आपने यह प्रयोग नहीं किया तो अभी करें. जिन महिलाओं को वात विकार अथवा जिन्हें भी घुटनों में दर्द की शिकायत है और यदि वे काम सुख के लिए लालायित रहते हैं तो श्रावण से कार्तिक महीने इस लालच से बचें और बताएं कि मध्य नवम्बर से अगले जुलाई तक उनके घुटनों, कमर का दर्द गायब रहा या नहीं तथा वात विकार से उन्हें निजात मिली या नहीं.
पुष्पेन्द्र फाल्गुन फाल्गुन विश्व

बुधवार, 20 फ़रवरी 2019

स्वास्थ्य के सम्बन्ध में जानकारी देने वाले पुरातन गणितीय शास्त्र का नाम ही है ज्योतिष्य

अक्सर आमजन ज्योतिषी के पास अपने आमजीवन की समस्याओं के निदान और निराकरण के लिए जाते हैं. विवाह, क्लेश, आर्थिक आभाव, व्यापार में घाटा, बेरोजगारी आदि के लिए ज्योतिषी से समाधान व उपाय पूछते हैं, मजेदार बात है कि ज्योतिषी उन्हें संतुष्ट भी करते हैं. जबकि ज्योतिष्य शास्त्र की किसी भी विधा में या किसी भी अंग-उपांग में इस तरह की कोई विधान है ही नहीं.
स्वास्थ्य को मानव-जीवन की संपदा कहा गया है. ज्योतिष्य समेत तमाम पुरातन परम्पराएं स्वास्थ्य की सजगता और स्वास्थ्य की महत्ता प्रतिपादित करने के लिए ही रची गयीं. लेकिन मनुष्य की महत्वकांक्षा एवं लालची वृत्ति ने इस स्वास्थ्य सूत्रिका को एक बड़े कारोबार में तब्दील कर दिया. एक अनुमान के अनुसार आज ज्योतिष्य दुनिया का सबसे तेजी से बढ़ता कारोबार है. अकेले भारत में ही करीब पाँच हजार करोड़ का सालाना कारोबार ज्योतिषी कर रहे हैं. लेकिन ज्योतिषियों के इस कारोबार से न तो भारत सरकार को कोई कर आदि प्राप्त हो रहा है और न ही मानवमात्र का कोई कल्याण. क्योंकि कारोबार बनाने के चक्कर में ज्योतिषी इस गणितीय सूत्र में बिद्ध सूत्रों को कबका कहीं दफना चुके हैं. आज ज्योतिषी मतलब धन-दौलत-ऐश्वर्य-वैभव या मनमाफिक जिन्दगी का कोई सफल शॉर्टकट नुस्खा देने वाला ज्ञानी, जबकि असल में ज्योतिषी औरों की मूर्ख बनाकर धन-दौलत-ऐश्वर्य-वैभव या स्वयं के लिए मनमाफिक जिंदगी बनाने वाला धूर्त और चालाक शख्स मात्र है.
ज्योतिष्य शास्त्र एक व्यक्ति के देह, बुद्धि, मन, मेधा, स्मृति और तदानुसार उसके जीवन के विविध कालखंड में इनमें उपस्थित होने वाली भिन्न-भिन्न अवस्थाओं की जानकारी अलग-अलग तरीके से दिया करता है. जीवन में अलग-अलग समय पर देह, मन, बुद्धि, स्मृति आदि पर होने वाले प्रभाव, घात, आघात तथा इनका सामना करने और इनसे उबरने की पद्धति की व्याख्या करता है. प्रत्येक व्यक्ति के लिए व्याख्या सर्वथा अनूठी होती है. एक व्यक्ति के लिए प्रतिपादित पद्धति किसी और के किसी काम की नहीं होती है.
एक बच्चे की कुंडली से उसके किशोरावस्था, यौवन, प्रौढ़ावस्था एवं वृद्धावस्था के प्रत्येक चरण में शरीर, मन, मस्तिष्क के स्वास्थ्य की अवस्था का ज्ञान होता है तथा यह भी मालूम होता है कि उस अवस्था विशेष की दुरुहता से कैसे पार पाकर आगे बढ़ा जाए. यह कहना आतिशयोक्ति नहीं होगी कि ज्योतिष्य शास्त्र जीवन को निर्बाध बनाने का गणितीय सूत्र है जिसकी व्याख्या विरले ही कर सकते हैं. सच्चा और नीयतमंद ज्योतिषी जिसे मिल जाए या कहें कि जो भी व्यक्ति ऐसे ज्योतिषी तक पहुँच जाता है, उसका जीवन धन्य ही समझें.
संपर्क -
पुष्पेन्द्र फाल्गुन
9922774236

  

खान-पान के अहम् फाल्गुन नियम

प्रतीकात्मक पेंटिंग : पुष्पेन्द्र फाल्गुन  इन्टरनेट या टेलीविजन पर आभासी स्वरुप में हो या वास्तविक रुप में आहार अथवा खान-पान को लेकर त...