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मेरी 11 साल की बेटी 'दिया' की डिजीटल पेंटिंग 'टीचिंग्स ऑफ़ लाइफ' |
सामने
भयावह चुनौतियाँ हैं
और
कई यक्ष प्रश्न
एक साथ खड़े हैं !
चारों ओर से उठे
अंधड़ों ने
मुझ तक आती
सूर्य-किरणों का रास्ता
रोक लिया है
पार्श्व से
सपनों के बिलखने के स्वर
तेज़ होते जा रहे हैं
अभी - अभी
मेरे कहने पर
बेटियों ने इन सपनों को
अपनी आँखों से नोच
धूल भरी सड़क पर पटक दिया है
पत्नी की उदासी भी
नया ठिकाना नहीं ढूँढ पाने के
अफ़सोस के साथ लौट आयी है
समय ने
मेरे लिये
कड़ी सज़ा मुक़र्रर की है
समय ने
मेरे बेबाक
मेरे दृढ़-निश्चय
मेरे जन-निष्ठ
होने को
अक्षम्य अपराध माना है
समय ने
मेरी इंसाफ़-पसंदगी को
घोषित किया है मानव-द्रोह
मेरी मुस्कराहट को
धर्म - विरोधी करार दिया है
मेरी जीजिविषा को
चरम अनैतिक कृत्य माना है
मेरे प्रयोगों को
असामाजिक और विद्वेष-पूर्ण
कार्रवाई की संज्ञा दी है
आसमान के सारे देवता
समय के
समस्त फैसलों से
सहमत हैं
मेरे सभी मित्र और शत्रु
देवताओं की कतार में खड़े हो
एक - सी - एक फब्तियाँ
मेरी ओर उछाल रहे हैं
लगता है देवताओं ने उन्हें भी
आखिर मेरे खिलाफ़ बरगला ही लिया है
जीवन की
समर-भूमि में मैं
अकेला और निहत्था
मित्रों और शत्रुओं से असंग
बेटियों और पत्नी की
नाउम्मीदी से लथपथ
सिर्फ इसी भरोसे खड़ा हूँ
कि एक दिन
मैं भी
छल और सपने के अंतर को समझूँगा
और
इन्सान की ज़िन्दगी को
बेबस, मजलूम, लाचार
जरूरतों की पनाहगार
बनाने वालों की ताबूत में
मेरे सपने,
आखिरी कील बनकर चमकेंगे