चारों तरफ
बरस रही है रात
नभ-मंडल का पर्दा खुल गया है
चाँद पर लिख इबारत
रास्ते
सोने चले गए हैं
चांदनी दबे पैर
आ गई है दूब पर
शबनम
बनाने लगी है घर
पूरे लय में
सितारे खेलते हैं
आँख मिचौनी
शहर की रोशनी से
सूर्य को सपने में देख
रास्ते चौंकते हैं
नींद में
शबनम की तन्मयता
सितारों का संघर्ष देख
अँधेरे को भी नींद आने लगी
नीरव मौन को
सुलाना जरूरी है
की इससे भंग हो रही है
रास्ते की नींद
सितारों का संघर्ष
शबनम की तन्मयता
आओ
मौन को सुलाएं
नींद तुम लोरी गाओ
मैं टोकरी में सपने भर
खड़ा हो जाता हूँ
मौन के सिराहने
रात का बरसना ज़ारी है
तो रहा करे
कसम से
(२००७ में प्रकाशित मेरे कविता संग्रह 'सो जाओ रात' की शीर्षक कविता. इस कविता को 'वागर्थ' के नव-लेखन प्रतियोगिता -२००७ में सांत्वना पुरस्कार भी दिया गया था.)