"हे भगवान्, अब आप हमारे क्लास के बच्चों के गाल और हाथ की रक्षा करना. कल टीचर को नया डस्टर मिल गया है, इस साल का डस्टर बड़ा मज़बूत और मोटा है और टीचर का निशाना भी एक दम पक्का है. अपनी सीट से बैठे-बैठे ही वे किसी का भी गाल लाल कर सकती हैं. कुछ ऐसा करो भगवान् कि टीचर से ये डस्टर गुम जाए. या फिर ऐसा करो कि टीचर को लकड़ी मिल जाए, कम से कम लकड़ी कि मार सही जा सकती है क्योंकि हमें उसके बारे में मालूम होता है. लेकिन ये टीचर तो जुबान पर लकड़ी से मारती है. एक काम करो भगवान् टीचर ही बदल दो..., हाँ भगवानजी, ये टीचर हटाकर कोई ऐसी टीचर हमें दो, जो हमसे प्यार से बातें करे, हमें प्यार से हर बात, हर सबक समझाए और पूछने पर मारे नहीं बताये, समझाए वो भी प्यार से, बिलकुल हमारी मम्मी की तरह..., आप सुन रहे हो न भगवानजी.."
गुरुवार, 30 जून 2011
मंगलवार, 28 जून 2011
बापू का चश्मा
सेवाग्राम आश्रम से बापू का चश्मा क्या चोरी हुआ, हाय तौबा मचाने वालों की तो निकल पड़ी. किसी ने सेवाग्राम आश्रम समिति को जमकर कोसा कि उन लोगों ने आखिर इतने महीनों तक चश्मे की चोरी छिपाए क्यों रखी? तो किसी ने पुलिस विभाग को कोसा कि अभी तक चश्मे का कोई सुराग नहीं लग सका.
लेकिन कोई भी उस चोर के बारे में क्यों नहीं सोचता!
वह बेचारा तो बापू का चश्मा चुरा कर कितना पछता रहा होगा?
क्योंकि न तो वह उसे पहन सकता है, न बेच सकता है!!
पहनेगा तो बापू की नज़र से दुनिया देखनी पड़ेगी!!
और बेचेगा तो एक ऐसी चोरी के लिए पकड़ा जाएगा, जिसकी लिए न जाने के लिए कितने लोग उसे दुआएं दे रहे होंगे कि अच्छा हुआ बापू का चश्मा गया, आज नज़र गई है... कल नजरिया भी चला ही जाएगा...
अब यदि चोर पकड़ा गया तो बापू के नज़रिए के जाने की आस लगाए बैठे तमाम लोगों की बद्दुआएं उसकी झोली में!!
मुझे तुमसे सहानुभूति है चोर जी...
सोमवार, 27 जून 2011
काका का एल्बम
कल इसी कविता को किसी और तरीके से लिखा था. आज 'कविता लेखन' पर अग्रज कवि-आलोचक नन्द भारद्वाज जी के मार्गदर्शन के बाद कल की कविता 'जय भीम कावडे काका, जय भीम' को कुछ इस तरह लिखा है. आप सुधीजनों से तवज्जों चाहता हूँ ...
तनि-तनि से पंख हैं उस सफ़ेद तितली के
जिन्हें मासूमियत से हिलाकर प्रदर्शित करती है वह अपना प्रेम
हालांकि सैकड़ों पैरों वाला वह जंतु उसे कतई नहीं पसंद
लेकिन क्या करे काका के एल्बम में उसके लिए जगह ही यहाँ थी
काका के एल्बम में
नाचते हैं मयूर
गूंजते हैं भौरे
सहमकर टंगा पड़ा है एक सफ़ेद उल्लू
और माजरे को समझने की कोशिश करता एक हिरन शावक इधर ही देखर रहा है
कुछ फूल और पत्तियों
और किस्म-किस्म की औषधियों की गुफ्तगूँ
आपको सुननी ही पड़ेगी साहेबान यदि आप देखेंगे काका का एल्बम तो
काका के एल्बम में सबकुछ अच्छा-अच्छा और सुन्दर नहीं है
कुछ बदसूरत और वीभत्स चेहरे भी देखने पड़ेंगे आपको
ये उन चेहरों के अंतिम अवशेष हैं
जिन्हें कुचलकर भाग गए हैं बस-ट्रक जैसे अति भारी वाहन
या कर-जीप जैसे कम वजनी वाहन
या फिर मोटर साइकल या स्कूटर जैसे हल्की गाड़ियाँ
इन चेहरों की पहचान बनाए रखने की ठोस वजह है काका के पास
उस वजह को आप देख पायेंगे उनकी आँखों में जब वे लम्बी-लम्बी उसाँसे भर
एल्बम के एक-एक पन्ने को इस तरह पलट रहे होंगे
जैसे कोई पलटता है जिंदगी की किताब पृष्ठ दर पृष्ठ
काका के एल्बम में खुशियों में भींगी आँखें
और मौत के मुंह से लौटकर आने पर किया जाने वाला
कसावट और तरावट भरा जोरदार आलिंगन भी है
काका के एल्बम के इस हिस्से का हर क्षण
उनके अनुभवों और कहानियों से उसी तरह जीवंत है
जैसे दो साल के बच्चे की तुतलाती बोली से जीवंत होती है जिंदगी
काका को पसंद नहीं है
किसी का डूब जाना
फिर वह डूबना
रेत घाट में ठेकेदारों द्वारा
नियमों को धता बताकर किये गए २०-२० फुट के गड्ढे में किसी नौजवान का डूबना हो
कि किसी मवाली की अश्लील टिप्पणियों से शर्म से फिसलती किसी स्त्री का डूबना हो
काका किसी को डूबने नहीं देते
घर से लाई गई रस्सी के सहारे वह बचाते हैं नदी और गड्ढे में डूबने वालों को
नीयत से लाई गई हिम्मत के सहारे वह बचाते हैं नारियों के स्वाभिमान
और उनके भीतर टूटते समाज और सदाचार को
काका के एल्बम में नहीं है उनकी रस्सी और नीयत का एक भी चित्र
नहीं है
'जय भीम कावडे काका, जय भीम' की अनुगूंज
जिसे सुना जा सकता है सिर्फ तभी
जब आप हों काका के साथ पल-दो पल ही सही
काका के एल्बम में नहीं है
वह धूप और छाँह
जिसे भोगा है उन्होंने अविरत ५६ साल
उस बहन की वेदना और ममता भी नहीं
जिसने अपने छोटे भाई-बहनों के लिए नहीं सजाई अपनी मांग
लौटा दिए अपने सपनों को बैरंग
काका के एल्बम में नहीं हैं
वे आशीष और दुआएं
जो बटोरी है उन्होंने हर शै-हर दिन
वे अफ़सोस भी नदारद हैं काका के एल्बम से
जिन्हें पिया है काका ने कई-कई लोगों के आंसुओं के साथ
काका के एल्बम में नहीं हैं मैं और आप
रविवार, 26 जून 2011
जय भीम कावडे काका, जय भीम
गाड़ेघाट* के मुहाने पर
आपको देख विस्मित होती आँखें
आत्मीयता से भर उठेंगी
जैसे ही आप उनसे कावडे काका के घर का पता पूछेंगे
यों गाड़ेघाट पूरे नागपुर जिले में 'अम्मा की दरगाह' के लिए मशहूर है
लेकिन इधर कावडे काका की वजह से इस गाँव का नाम
कई लोगों के लिए आदरणीय हो गया है
५६ साल पुरानी देह में रहते हैं कावडे काका
लेकिन उनके उत्साह और बुद्धि और मेधा और हिम्मत का
उनकी देह से कोई जोड़ बैठ ही नहीं पाया अब तक
इसलिए आप देखते ही कहेंगे
काका आप तो ३८-४० से ज्यादा के नहीं लगते
गाड़ेघाट अम्मा की दरगाह और कावडे काका के अलावा भी
कुछ अन्य वजहों से जाना जाता है इस हल्क़े** में
जैसे यहाँ के रेती घाट
ठेकेदार यहाँ से रेती निकालते समय
इतने तल्लीन हो जाते हैं
कि हर साल चार फुट की तय जगह
की बजाय १२-१५-१८-२० फुट तक खोह करते हैं
और आराम से रेती ले जाकर पैसा कमाते हैं
रायल्टी चार फुट की, बाकी का 'माल' अपने बाप का
ठेकेदारों की इस प्रवृति को
तहसीलदार और कलेक्टर की स्थायी हरी झंडी मिली हुई है
तहसीलदार और कलेक्टर की स्थायी हरी झंडी मिली हुई है
ठेकेदार की करतूतों की सजा भुगतती है नदी
कन्हान नदी कि जिसके किनारे बसा है गाड़ेघाट
और इसी गाड़ेघाट में है अम्मा की दरगाह और कावडे काका का घर
जो लोग दरगाह में आते हैं
वे कन्हान नदी में जरूर नहाते हैं
और नहाते समय यदि वे उन गड्ढों में चले गए
जिसे ठेकेदार ने हराम की कमाई के लिए खोद रखा है
तो उन्हें बचाने फिर अम्मा जी कि दुआ नहीं
कावडे काका की हिम्मत काम आती है
कावडे काका की हिम्मत काम आती है
कावडे काका ने
सैकड़ों लोगों को डूबने से बचाया है
उन्हें भी जो माहिर तैराक थे
उन्हें भी जिन्हें पानी लगता था
कि नदी में नहाने के लिए तैरना आना जरूरी नहीं
कि नदी में नहाने के लिए तैरना आना जरूरी नहीं
अभी हाल ही
किसी की शिकायत पर
ठेकेदारों की धांधली की जांच करने आये तहसीलदार की आँख के सामने
डूबने लगे दो जायरीन अम्मा की दरगाह के सामने
बचाओ-बचाओ की आर्त पुकार ने तहसीलदार के होश फाक्ता कर दिए
उन गड्ढों में यदि वे दोनों जायरीन डूब जाते
तो तहसीलदार के नौकरी और इज्ज़त का डूबना भी तय था
तभी किसी ने तहसीलदार को कावडे काका के बारे में बताया
तहसीलदार ने काका को बुला लाने का हुक्म जारी किया
तो किसी ने तहसीलदार को बताया कि
काका तो उन दोनों डूबने वालों को बचाने की कवायद में जुटे हुए हैं
एक मल्लाह उस गड्ढे में उतर कर
उलटे पैर ही लौट आया था ऊपर
काका ने उसे डांट कर घर भगाया
और घर से
साथ लाई गई रस्सी के सहारे
साथ लाई गई रस्सी के सहारे
दोनों बच्चों को
उस २० फुट गड्ढे से
सकुशल बाहर निकाला
उस २० फुट गड्ढे से
सकुशल बाहर निकाला
दोनों बच्चों को जीवित देख
तहसीलदार को अपना रुतबा याद आया
तहसीलदार को अपना रुतबा याद आया
दोनों बच्चों के डपटते हुए
उसने पूछा कि घर से अम्मा की दरगाह के लिए आते हो कि नदी में नहाने
उसने पूछा कि घर से अम्मा की दरगाह के लिए आते हो कि नदी में नहाने
जवाब में कावडे काका ने तहसीलदार से पूछ लिया कि साहब
आप ठेकेदारों को चार फुट की बजाय
बीस फुट का गड्ढा करने की इजाज़त क्यों देते हो?
बीस फुट का गड्ढा करने की इजाज़त क्यों देते हो?
तहसीलदार ने झट
कावडे काका को गले लगाते हुए
कहा, 'यार तुमने मेरी नौकरी बचा ली'
कावडे काका को गले लगाते हुए
कहा, 'यार तुमने मेरी नौकरी बचा ली'
कावडे काका के एल्बम में कैद हैं
न जाने कितने ही ऐसे किस्से
और उनकी चश्मदीद तस्वीरें
न जाने कितने ही ऐसे किस्से
और उनकी चश्मदीद तस्वीरें
एल्बम में ही कैद हैं कुछ अफ़सोस भी कि
जिन्हें काका गाहे-बगाहे याद करते रहते हैं
और अपनी मुट्ठियाँ भींचते रहते हैं
ये उन लोगों की तस्वीरें हैं
कि जिन्हें काका नहीं बचा पाए डूबने से
अपनी तमाम कोशिशों के बावजूद
कावडे काका के एल्बम में
वे चेहरे भी हैं
जो सड़क दुर्घटनाओं में
वीभत्स होकर अपनी पहचान को चुके हैं
लेकिन जी रहें हैं अपनी जिंदगी
कावडे काका की मुस्तैदी की बदौलत
वीभत्स होकर अपनी पहचान को चुके हैं
लेकिन जी रहें हैं अपनी जिंदगी
कावडे काका की मुस्तैदी की बदौलत
लेकिन इसके पहले कि लम्बी उसांस के साथ
आप कोई निराशाजनक बयान जारी करने का मन बनाएं
कावडे काका आपके सामने खोल देंगे वह एल्बम
आप कोई निराशाजनक बयान जारी करने का मन बनाएं
कावडे काका आपके सामने खोल देंगे वह एल्बम
जिसमे मुस्कुरा रहे होंगे किसिम-किसिम के फूल
तरह-तरह के जंतु
भांति-भांति के पक्षी
कुछ दुर्लभ- कई सुलभ
सफ़ेद तितली और उल्लू भी
कावडे काका के पास अखबारों की कतरनों
और तस्वीरों की भरमार है
कि जिसमे उनके हिम्मत की चर्चा और प्रशस्तियाँ हैं
लेकिन काका आपको यह सब दिखाते हुए
बहुत खुश नहीं होते
बहुत खुश नहीं होते
बहुत धीरे से बोलते हुए
बताते हैं काका अपने अविवाहित रहने की वजह
बताते हैं काका अपने अविवाहित रहने की वजह
और अपनी बड़ी बहन के भी अविवाहित रह जाने का कारण
दोनों ने
अपने से छोटे भाई-बहनों के लिए
जीवन भर खटने का निश्चय किया था
अपने से छोटे भाई-बहनों के लिए
जीवन भर खटने का निश्चय किया था
दोनों आज
इस बात से खुश हैं
कि सभी छोटे भाई-बहन अपने-अपने रास्ते पर हैं
इस बात से खुश हैं
कि सभी छोटे भाई-बहन अपने-अपने रास्ते पर हैं
काका ने ४० भैंस और २० गाय पाल रखी है
काका ने अपने दम पर खरीदी है पचासों एकड़ जमीन
लेकिन ख़ुशी काका के चेहरे से गायब है
कावडे काका ने सैकड़ों लोगों को जीवन-दान दिया
सैकड़ों परिवारों को बेसहारा होने से बचाया
काका ने डूबने से बचाते वक़्त और बचाने के बाद भी
कभी नहीं पूछा किसी से उसका नाम-और जाति
लेकिन बचने वाले और उसके परिवारजन
कभी नहीं भूलते
कभी नहीं भूलते
पूछना काका का नाम और उनकी जाति
और जाति जानने के बाद यह कहना भी नहीं भूलते
कि अभी मौत नहीं लिखी थे हमारे ....
काका बताएँगे कि
उन पर जो ज्यादातर मुक़दमे चल रहे हैं
वे उन ज्यादतियों की खिलाफत का नतीजा हैं
जो उन्होंने ब्राह्मणों और उच्च जातियों की लड़कियों से
उनके ही लोगों द्वारा किये जाने पर जताया था और लड़कियों को बचाया था
लेकिन रसूखदारों ने उलटे उनपर ही मुक़दमे चपेटे थे
उनके ही लोगों द्वारा किये जाने पर जताया था और लड़कियों को बचाया था
लेकिन रसूखदारों ने उलटे उनपर ही मुक़दमे चपेटे थे
जिन लड़कियों की आबरू बचाई थी उन्होंने
उनके परिजन कहते
कि हमने तो नहीं कहा था कि हमारी बच्ची की आबरू बचाओ
कि हमने तो नहीं कहा था कि हमारी बच्ची की आबरू बचाओ
आज भी
औसतन
दो जान
रोज बचाते हैं कावडे काका
दो जान
रोज बचाते हैं कावडे काका
लेकिन अब आबरू का टोटका वे कतई नहीं मानते
अब काका
तितलियों
मोरों
भौरों
पक्षियों
जंतुओं
उल्लुओं
और जानवारों की जान बचाने को
ज्यादा तवज्जो देते हैं
ज्यादा तवज्जो देते हैं
कहते हैं कि इधर जाति के नाम पर
लगातार क्या एकाध बार भी
अपमानित होने का कोई खतरा नहीं है बाबा!
लगातार क्या एकाध बार भी
अपमानित होने का कोई खतरा नहीं है बाबा!
मेरे जैसे लोग
कावडे काका के इस जज्बे पर
कावडे काका के इस जज्बे पर
सजदा करते हुए कह ही उठते हैं
जय भीम कावडे काका, जय भीम
* नागपुर जिले का छोटा सा गाँव
** इलाका
गुरुवार, 23 जून 2011
इन कविताओं को पढ़ा जाए...
१९९५ की सर्दियों की एक सुबह ननिहाल में बैठे-बैठे 'फूट' पड़ीं ये कविताएं. आकार में ये कविताएं अत्यंत छोटी हैं, लेकिन एक ही 'मूड' में लिखी गईं हैं. ये सभी कविताएं 'सो जाओ रात' संग्रह में संकलित हैं. आज इन्हें बहुत सालों बाद पढ़ रहा था, तो लगा कि आप मित्रों से भी इन्हें साझा किया जाये...
प्रश्न
दर्पण निहारने का
कार्यक्रम
**
उत्तर
जिसे
ढूँढा जाए
**
इच्छा
स्वाद की तलाश में
पीड़ा भोगने की
एक क्रिया
**
जीवन
आड़ी-टेढ़ी
लकीरों का
एक लटकता गुच्छ
जिसे खींचने पर
गाँठ पड़ने का भय
सदैव बना रहा
**
माँ
जो जानती है हमारे विषय में वह सब
जो हम नहीं जान पाते कभी
जो हमें दे सकती है वह सब
जिसके आभाव में स्वयम वह
कलपती रही है ता-उम्र
जो सदा हमें छिपाने को तैयार
हम चाहें तो भी, न चाहे तो भी
जिसकी उंगलियाँ जानती हैं बुनना
जिसकी आँखें जानती है डूब जाना
जिसके स्वर में शैली और गुनगुनाहट हो
जो हमेशा चादरों की बात करे.
**
पिता
उन्हें नहीं मालूम
उनकी किस उत्तेजना में बीज था
वे घबराते हैं
यह जानकार कि काबिलियत
उनके ही अस्तबल का घोड़ा है
संतति को लायक बनाने के लिए
सारी तैयारियां कर चुके हैं वे
और यह सोचकर ही
खुश हो लेते हैं कि उनके बच्चे
नहीं बंधना चाहते हैं उस रस्सी से
कि जिससे बंधते आये हैं वे
और उनके पूर्वज
विरासत में लेकिन
बच्चों के लिए
वे छोड़ जाते हैं
कई-कई मन रस्सियाँ.
**
ईश्वर
दौड़ते हुए लोगों की आकांक्षा
दौड़ने के ख्वाहिशमंदों के लिए एक आकर्षण
दौड़कर थके और पस्त हुए लोगों के लिए
होमियोपैथिक दवा
जो दौड़ न सके
उनके लिए तर्क
दौड़ते-दौड़ते गिर गए जो
उनके लिए प्यास
जिसने अभी चलना नहीं सीखा
उसके लिए जरूरी पाठ्यक्रम
असल में ईश्वर
उपन्यास का एक ऐसा पात्र
जिसके चरित्र पर है
लेखक का सर्वाधिकार.
**
मैं
जो अपने विषय में
सोच भी नहीं सकता
**
तुम
जो मेरे विषय में
सोच ही नहीं रखते
**
सच
जिसका कोई ठिकाना न हो
जो ढूंढते हुए ठौर
पूछ बैठे
आपसे रास्ता
**
झूठ
जिसके विकल्पों के ढेर
हों अनुपलब्ध
**
दृष्टि
जो देखे हुए को
झुठलाये एक बार
बार-बार
हर बार
**
आग
कोने में
ठंडा पडा है चूल्हा
पेट में तेज लगी है आग
**
स्त्री
अपने स्तन
और योनि की वजह
जिसे सहना पड़े
लांछन बार-बार
**
पुरुष
असमंजस का शिकार
बार-बार
फिर भी निर्णय के सूत्र पर
उसका ही अधिकार
**
भूख
जो मस्तिष्क से पेट के बीच
झूलती रहती हो
बिना लटके
**
नींद
अपलक जो
बुनता रहा भविष्य
उसके सपनों को आ गई नींद.
**
दिन
जो पक्षियों के कलरव से जन्में
और फूलों की पंखड़ियों में मुरझा जाए
**
रात
सीख गए जो
मजबूरी-लाचारी जैसे शब्द
इनका मतलब उन्हें समझाती है रात
**
हंसी
आँखें रोना चाहती हैं
लेकिन औरों को देख होंटों ने हंस दिया
**
रुलाई
घर से दूर है मस्जिद
तो रहा करे
और बच्चे
तू तो रोता ही रह
खुदा का अब मेरे घर
रोज का आना-जाना है.
**
अस्पताल
मृत्यु का
एक ऐसा प्रतीक्षालय
जहां से
मृत्यु के आगमन-प्रस्थान का पट
नदारद हो
**
मरीज
जो मरेगा
लेकिन अपनी मौत नहीं
**
चिकित्सक
डिग्रियां लेकर
जो दवाइयां बेचे
जो कभी न कहे
यूरेका मैं सीख गया.
**
रौशनी
जलने से नहीं होती रौशनी
अँधेरे को खुला छोड़ दो
वह ढूंढ लाएगा
**
धुआं
आँखों से
आंसू निकालने की क्षमता के बावजूद
जिसे नसीब न हों आँखें
**
विवाह
इच्छा को
अच्छा बनाने का
एक सामाजिक प्रयास
**
विद्यालय
पुस्तकों के वजन मापन की
प्रथम इकाई
**
पुत्र
पिता का उपनाम
**
पुत्री
जिसे देख
पिता की आँखें सिकुड़ती रहें
भय और चिंता से
**
शिक्षक
स्वयं जो जानता है
वही दूसरों से भी कहे जानने
जिन बातों को मारे दर के
खुद नहीं मान पाया
उन्हीं बातों को मान लेने की
नसीहत देता फिरे
**
पुस्तक
अक्षर के काँधे पर
भारी शब्द भीड़
कि जिसके साथ चलती है अविरत
भावनाओं की शवयात्रा
जिसे दो वाक्यों के बीच
खड़े होकर सिर्फ
सिद्धार्थ ही देख सके
काश! वे पढ़ भी लेते
**
प्रयास
आत्म-मनन की दिशा में
एक कदम
**
दिशा
दृष्टि की
कट्टर समर्थक
**
असफलता
पिता की गोद में
बैठे बेटे के सिर पर
चोंच मारने का उपक्रम करता कौआ
**
फिल्म
खुली आँखों का स्वप्न
खोई हुई आँखों की मंजिल
**
बस
जिसे चालाक नहीं
परिचालक चलाता है
**
रेल
जिसमे
सफ़र करती हैं
दुश्चिंताएं
शंका
और भय
**
गोबर
दैनिक जरूरतों से भरी
एक नारी का शोकगीत
**
विज्ञापन
जिसके विषय में
सदैव बना रहे असमंजस
**
पत्रकार
जो अपनी भूख को
कर सके परिभाषित
**
पत्रकारिता
कलम जानती हो
कि बिन स्याही वह अस्तित्वहीन और गैर-महत्त्वपूर्ण है
फिर भी चले बे-मसि
**
शून्य
दिन भर अथक पसीना बहाकर भी
सोना पड़े रात
घुटनों को पेट से सटाकर
**
न्यायालय
जहां न्याय
दो वकीलों के बीच
बहस का मुद्दा हो
जहां न्याय
किसी न किसी कटघरे में ही खड़ा होता हो
जहां न्याय
न्यायाधीश की मर्ज़ी पर आश्रित है
जहां से कभी भी
सुनी जा सकती है
न्याय की चीख
**
वकील
जो न्याय साबित कर सकता हो
जो अन्याय साबित कर सकता हो
जो न्याय को अन्याय साबित कर सकता हो
जो अन्याय को न्याय साबित कर सकता हो
जो नहीं जानता न्याय क्या है-अन्याय क्या है
बस साबित कर सकता हो
**
न्यायाधीश
जो न्याय और अन्याय के बीच करना चाहता हो अंतर
जिसके लिए न्याय वह है जो अन्याय नहीं
जिसके लिए अन्याय वह है जो न्याय नहीं
जो जानता है कि न्याय और अन्याय के बीच वह स्वयं है
लेकिन मानता नहीं
**
ज्ञान
मिटने-मिटाने से होता है आरम्भ जिसका
और पा जाने के एहसास से हो जाता है ख़त्म
**
धरती
जिसके लिए लड़े जाएँ
सबसे ज्यादा मुकदमें
या फिर की जाएँ हत्याएं
**
आकाश
जहां वांछित हो हवा-पानी
अनुसंधान के रूप में
**
बिस्तर
नींद आने के बाद जरूरी
नींद से जागने के बाद जरूरी
**
पर्वत
जहां से ट्रकों
और बसों को गिरने में आसानी हो
जहां मंदिर बनाना कभी भी
घाटे का सौदा नहीं होता
**
समय
जो अपने पास न हो
लेकीन दूसरों की कलाइयों पर
और मुट्ठियों में सदा दिखाई दे
**
जंगल
जहां
वृक्ष निर्भय होकर श्वाश भर सकें
जहां पशुओं के आने-जाने पर
किसी के पेट में दर्द न होता हो
जहां धरती, आकाश, पृथ्वी, वायु और अग्नि की
एक ही इच्छा होती हो कि कोई उन्हें
निर्वासित न कर सकें
**
नदी
जो बहना जानती हो
जो बहाना जानती हो
जो डूबना जानती हो
जो डुबाना जानती हो
जिसमें इतनी सहिष्णुता हो कि
कोई भी उसके किनार बैठ कर फारिग हो सके
**
प्रेमिका
जो कहानियों के लिए जरूरी है
जो हंसकर उद्घाटित करती है कविता
जो हमेशा चाहती है कि कोई उसे हमेशा चाहे
जो देना चाहती है आकुलता को एक नया अर्थ
प्रेमिका सिर्फ स्त्री ही हो सकती है
**
कवि
जो सूर्य से ऊष्मा, ऊर्जा और प्रकाश के इतर भी कुछ पाता हो
जो चाहता हो कि पक्षी भी उड़े गगन में पंख हिलाए बिना
जो बिखरा पाता है खुद को अपने आस-पास
जो हमेशा पीना चाहता है गिलास की अंतिम बूँद
जो जानता है कि चाँद
दूज से पूर्णिमा तक और पूर्णिमा से अमावस का सफ़र
करता है नियमित
फिर भी हठ, आग्रह, आन्दोलन करे कि
चाँद की यात्रा
अनियमित की जाए
जो कविताएं लिखे ही नहीं
जिए भी.
****
शनिवार, 18 जून 2011
टूट जाना ही बेहतर...
( सुभाष तुलसीता का रेखांकन )
हालाँकि
टूटने के बाद
बिखरने का डर बना रहता है,
लेकिन मैं सोचता हूँ
कि टूट ही जाऊं तो बेहतर होगा
आखिर कब तक बिखरने के डर से
न टूटने का अभिनय करता फिरूंगा
आप मित्रों से अनुरोध है कि मैं बिखरने लगूँ यदि, तो कृपया मुझे समेटने की कोशिश बिलकुल न कीजियेगा.
हालाँकि मैं जानता हूँ
किसी के बिखराव का चश्मदीद होना आसान नहीं होता
हमारा अहम् हमें न बिखरने की ही इजाज़त देता है और न ही बिखराव के दर्शक होने की
लेकिन कद्रदानों-मेहरबानों
मुझे बिखरने देना
टूट-टूट कर बिखरने देना
चूर-चूर होकर बिखरने देना
फूट-फूट कर बिखरने देना
मत रोकना
मत टोकना
हाँ नज़र जरूर रखना कि
कोई मेरे बिखराव का अफसाना न बना ले
कोई मेरे बिखराव को अपने शिगूफों का ठिकाना न बना ले
कोई मेरे बिखराव पर अपनी रोटियां न सेक ले
कोई मेरे बिखराव की बोटियाँ न नोच ले
ये क्या
मैं तो सच-मुच टूट रहा हूँ...!!! ???
शुक्रवार, 17 जून 2011
क्यों जरूरी है फाल्गुन विश्व का प्रकाशन?
इसलिए जरूरी है फाल्गुन विश्व का प्रकाशन -
- ताकि प्रतिरोध और असहमतियों की आवाजों के लिए जगह बची रहे.
- ताकि रूबरू होता रहे आम पाठक अपने समय-सत्ता-समाज से.
- ताकि मुझे जीने का मकसद मिले.
- ताकि तुम्हें जीने का मकसद मिले.
- ताकि बेहतर दुनिया बनाने का हमारा सपना आकार पाए...
- ताकि संभावनाएं अशेष रहें
- ताकि विडम्बनाएं मुक्ति पायें
- ताकि समता और इन्साफ हमारे समाज का चरित्र बनें
- ताकि हर कोई बन सके अपना दीपक स्वयं, ''अत्त दीपो भव"
आइये मिलजुलकर इस अभियान को आगे बढ़ाएं
फाल्गुन विश्व पढ़े-पढ़ाएं
एक अंक - मूल्य १० रूपए मात्र
सालाना ग्राहकी महज १०० रूपए में
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गुरुवार, 16 जून 2011
क्योंकि कामठे जी सोते रहे, इसलिए सैकड़ों लोग जागते रहे...
अच्छा हुआ आप यहाँ नहीं हैं, हमारे साथ. अरे साहब हम इस समय महाराष्ट्र की उपराजधानी यानी नागपुर जिले के एक छोटे से गाँव कन्हान में हैं. कन्हान के तुकराम नगर मोहल्ले में किराए से रहते हैं अपन. यदि आप भी कल मेरे साथ यहाँ होते, तो रात भर आपको जागना पड़ता. जी जागना इसलिए पड़ता क्योंकि कामठे साहब सोये हुए थे.
अब ये कामठे साहब के सोने की वजह से अपने जागने का क्या मतलब? यही पूछना चाहते हैं न आप? तो साहेबान जान लीजिये की कामठे साहब वो शख्स हैं की जिनकी मर्जी की बिना इनदिनों रातों में सो पाना नामुमकिन हैं. कामठे साहब सोते रहेंगे तो मच्छर आपके यहाँ अपने पूरे कुटुंब के साथ डेरा डाल देंगे. बारिश का मौसम है साहेबान, उमस भी इनदिनों क्या कमाल की होती है, फिर चाहे रात हो या दिन, उमस तो अँधेरा-उजाला देखकर होती नहीं.
कामठे साहब, हमारे 'इलाके' के कतिपय गणमान्य 'लाइनमैनों' में से एक 'लाइनमैन' हैं!! जी लाइनमैन!!!
लाइनमैन यानी ऐसा व्यक्ति जो आपकी रात खराब कर सकता है, आपके सपनों को चकनाचूर कर सकता है.
पिछली रात यानी १५ जून की रात पूरी दुनिया चंद्रग्रहण का मजा ले रही थी. ये गलती अपन ने भी की. रात के ढाई बजे तक अपन ने भी चंद्रग्रहण का नज़ारा देखा. बस छत से उतरकर घर में जैसे ही दाखिल हुए, बिजली गुल हो गई. वापस छत पर गए तो आधे कन्हान में बिजली दिखाई दी. समझ आया कि अपने मोहल्ले का फ्यूज गया है. बिजली विभाग के दफ्तर फोन घनघनाया गया तो मालूम हुआ कि लाइनमैन से संपर्क किया जा रहा है, लेकिन उनका 'मोबाइल स्विच ऑफ' बता रहा है. अब बताइये, इन लाइनमैन साहब की रात पाली है और ये जनाब अपना मोबाइल बंद कर आराम से घर में सोये हुए हैं. विभाग के आला अधिकारियों को जब इस बात की जानकारी दी गई और बताया गया कि लाइनमैन फोन बंदकर घर में सो रहा है, तो अधिकारियों का जवाब था, "आइये मिलकर इंतज़ार करें".
और फिर हम सबने मिलकर बिजली विभाग के दफ्तर में ही कामठे साहब का इंतज़ार किया. सुबह सात बजे कामठे साहब सोकर उठे. हाथ-मुंह पर पानी का छींटा रसीद किया और पहुँच गए दफ्तर, क्योंकि आठ बजे उनकी पाली ख़त्म होने वाली थी. दफ्तर पहुँचते ही उन्होंने 'कम्प्लेंट रजिस्टर' का मुआइना कर लिया. "ये क्या तुकाराम नगर में रात ढाई बजे से एक फेस फ्यूज है", लगभग चीखते हुए उन्होंने हैरत प्रगट की और खा जाने वाली नजरों से 'कम्प्लेंट अटेंडेंट' को देखा. फ़ौरन अपनी गाड़ी उठाई और तुकाराम नगर की और चल दिए. वहाँ जाकर उन्होंने फेस दुरुस्त कर दिया. साढ़े सात बजते-बजते तुकाराम नगर में फिर लौट आई बिजली रानी. पुनः दफ्तर लौट कर कामठे साहब ने बड़बड़ाते हुए हम लोगों को सुनाना शुरू किया, "फ्यूज जाता है तो क्या मेरे को बता नहीं सकते आप लोग, मेरे को आप लोग गैर समझते हो! अरे एक फोन नहीं कर सकते आप लोग!!" उनके दुःख को देखकर हमें यानी तुकराम नगर के वासियों और विभाग के आला अधिकारियों को अपनी गलती का एहसास हुआ और हम लोग सर हिलाते और मंद-मंद मुस्कुराते अपने-अपने घरों की और लौटे.
उधर मजमा छंटते ही कामठे साहब ने गार्ड को हुक्म दिया, "जा बे दोन चाय ला, एक तू पी, एक मेरे को ला, आज की नौकरी बड़ी मुश्किल से बची है साली!!!"
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