( सुभाष तुलसीता का रेखांकन )
हालाँकि
टूटने के बाद
बिखरने का डर बना रहता है,
लेकिन मैं सोचता हूँ
कि टूट ही जाऊं तो बेहतर होगा
आखिर कब तक बिखरने के डर से
न टूटने का अभिनय करता फिरूंगा
आप मित्रों से अनुरोध है कि मैं बिखरने लगूँ यदि, तो कृपया मुझे समेटने की कोशिश बिलकुल न कीजियेगा.
हालाँकि मैं जानता हूँ
किसी के बिखराव का चश्मदीद होना आसान नहीं होता
हमारा अहम् हमें न बिखरने की ही इजाज़त देता है और न ही बिखराव के दर्शक होने की
लेकिन कद्रदानों-मेहरबानों
मुझे बिखरने देना
टूट-टूट कर बिखरने देना
चूर-चूर होकर बिखरने देना
फूट-फूट कर बिखरने देना
मत रोकना
मत टोकना
हाँ नज़र जरूर रखना कि
कोई मेरे बिखराव का अफसाना न बना ले
कोई मेरे बिखराव को अपने शिगूफों का ठिकाना न बना ले
कोई मेरे बिखराव पर अपनी रोटियां न सेक ले
कोई मेरे बिखराव की बोटियाँ न नोच ले
ये क्या
मैं तो सच-मुच टूट रहा हूँ...!!! ???