वह भैया है या अंकल उसे नहीं पता, बस वह इतना जानता है कि उसका जन्म दूध बेचने के लिए ही हुआ है। बाप-दादा यही करते रहे, सो उसे भी यही करना है। बाप-दादा भी यह जानते थे कि उसे यही करना है, इसीलिए जब वह सातवीं क्लास में अपने मास्साहब की कलाई काट कर घर भाग आया था, तो वे दोनों जोर से हँस पड़े थे।
वह रोज गाँव से शहर आता है दूध बेचने। पहले साइकिल से आता था, लेकिन इधर एक साल पहले जब उसने दाढ़ी वाले नेताजी के मुंह से विकास का नाम और मतलब सुना था, तब से वह रात दिन अपने विकास की फ़िक्र में घुलने लगा था, लिहाजा उसके बाप ने उसकी शादी कर दहेज़ में एक मोटरसाइकिल मांग ली। तो वह अब दूध बेचने मोटरसाइकिल पर गाँव से शहर आता है।
अभी चार-पांच दिन पहले की बात है। अखबार में छपा था कि भीषण गर्मी पड़ रही है। तापमान ४७ डिग्री सेल्सियस तक पहुँच गया था। उस दिन, वह अपनी मोटरसाइकिल से दूध देने शहर की और भागा जा रहा था। अचानक शहर से दस किलोमीटर पहले उसकी मोटरसाइकिल भुक-भुक कर बंद पड़ गई। अभी वह नीचे उत्तर कर यह समझने की कोशिश ही कर रहा था कि कल रात दस बजे तक अच्छी चलने वाली मोटरसाइकिल, आज अचानक क्यों बंद पड़ गई कि सड़क से गुजरते लोगों ने उसको समझने की मुश्किल का सामना करने से बचा लिया।
एक मोटरसाइकिल-गीर ने कहा, 'प्लग में कचरा गया होगा।' दूसरे ने कहा, 'गाड़ी ने एयर लिया होगा। गर्मी में अक्सर ऐसा होता है।' तीसरे ने कहा, 'पेट्रोल में कचरा होगा।' पेट्रोल शब्द सुनते ही उसे ध्यान आया कि कल शाम को शहर से लौटते समय उसने पेट्रोल भराया ही नहीं था। उसने पेट्रोल टंकी खोल कर देखा, टंकी छूँछी थी। पेट्रोल पंप जरा दूर था। सलाह वीरों को जब मालूम हुआ कि बन्दे की टंकी में पेट्रोल नहीं है, तो वे चुपचाप खिसक भागे।
पेट्रोल पंप तक मोटरसाइकिल को खींच कर ले जाने के अलावा उसके पास कोई चारा न था। वह मोटरसाइकिल खींचने लगा। कुछ ही मीटर उसने मोटरसाइकिल खींची थी कि एक ख्याल से उसका मगज जगमगाने लगा। उसने मोटरसाइकिल खड़ी कर, गाड़ी के हैंडल से दूध का एक लीटर वाला डिब्बा निकाला, गाड़ी के पेट्रोल टंकी का ढक्कन खोला और दूध का डिब्बा उसमें उड़ेल दिया। एक लीटर दूध पेट्रोल टंकी में डालने के बाद उसने सोचा, दूध जब आदमी को दौड़ा देता है, तो यह तो मशीन है। सोचने के बाद वह मोटरसाइकिल की किक मारने में जुट गया। उसने पच्चीसों मिनट किक मारने के बाद मान लिया कि दूध सिर्फ इंसानों और बिल्लियों और कुत्तों के लिए होता है, मशीनों के लिए नहीं।
वह फिर मोटरसाइकिल को धक्का मारने लगा। थोड़ी दूर पर उसे दो लड़के बस का इंतजार करते मिले। उसने फिर अपनी बुद्धि को तकलीफ देने की योजना बनाई। उसने उन दोनों युवकों से कहा, 'यदि तुम लोग दो किलोमीटर दूर पेट्रोल पंप तक मेरी मोटरसाइकिल को धक्का लगाओ तो मैं तुम दोनों को एक-एक लीटर दूध पीने को दूंगा।' लड़के शायद भूखे थे। उन्होंने झट उसका प्रस्ताव मान लिया। दोनों ने बारी-बारी से खींचकर मोटरसाइकिल पेट्रोल पंप तक पहुंचा दी। उसने भी अपना वादा पूरा करते हुए दो लीटर का डिब्बा मोटरसाइकिल के हैंडल से निकालकर उन दोनों को लड़कों को देते हुए कहा, 'तुम दोनों यह डिब्बा खाली करो, मैं तब तक पेट्रोल भरा कर आता हूँ।' वह सड़क पार कर पेट्रोल पंप ले गया मोटरसाइकिल। दोनों लड़के सड़क के इस पार के ढाबे चले गए दूध का डिब्बा लेकर। ढाबे वाले को चालीस की जगह तीस रूपए के भाव से दो लीटर दूध मिल गया। खाली डिब्बा लेकर वे दोनों लड़के वापस उसी जगह पर लौट आए।
पेट्रोल पंप पर पेट्रोल भराने के बाद से वह मोटरसाइकिल शुरू करने का यत्न कर रहा था। लेकिन मोटरसाइकिल चालू होने का नाम ही नहीं ले रही थी। वे दोनों लड़के उसे देख रहे थे। वह मोटरसाइकिल खींच कर सड़क के इस पार आ गया। दोनों लड़कों से अपना खाली डिब्बा लेकर उन्हें धन्यवाद किया। लड़के चले गए। वह डिब्बे को हैंडल पर लटकाकर फिर से किक मारकर मोटरसाइकिल शुरू करने की कोशिश करने लगा। हारकर वह ढाबे की बगल वाले मोटर मैकेनिक के पास मोटरसाइकिल ले गया। मैकेनिक ने चेक करने के बाद बताया कि पेट्रोल टंकी में बड़ी मात्रा में पानी है। पूरी टंकी निकाल कर साफ़ करना पड़ेगा। वह बहुत दुखी हुआ। उसने वही से चिल्लाकर पेट्रोल पंप के मालिक को भद्दी-भद्दी गलियां दी। हाथ नचाकर पूछा कि आखिर वह पेट्रोल में पानी क्यों मिलता है।
खीझकर वह ढाबे में आकर बैठ गया। ढाबे वाले सरदार जी से कहा, 'बाउजी, चाय पिलाओ।' ढाबे के मालिक ने सोचा कि पैकेट के दूध की बजाय उस दूध से चाय बनाता हूँ, जिसे थोड़ी देर पहले दो लड़के दे गए हैं। शायद इस मुंडे का गरम मूड कुछ ठंडा पड़ जाये।
उसी दूध से चाय बनी। दारजी ने खुद उसे चाय परोसी। उसने चाय का घूँट मुंह में भरते ही थूंक दिया। चिल्लाकर कहा, 'क्या बाउजी, सिर्फ पानी की चाय बनाई है क्या?'
सरदारजी से सोचा, 'मैंने तो जी प्योर दूध की चाय बनाई थी।'
#नई_लोक-कथाएं_सीरीज_१