जब तक नहीं खड़े होंगे हम अपने भीतर के सामंत के खिलाफ
तब तक हम बने ही रहेंगे,
मालिक, नौकर, बागी, प्रशंसक या चाहे जो,
लेकिन पुख्ता हुक्म के गुलाम
हुक्म देने के गुलाम,
हुक्म मानने के गुलाम
ज्यादा उदार हुए तो हुक्म देते हुए
बिल्कुल फुसफुसाते हुए लोकतंत्र का हवाला भी दे देंगे
ज्यादा समझदार हुए तो हुक्म मानते हुए
हुक्म न मानने वालों की फेरहिस्त का बोसा करेंगे चुप-छिप कर
हुक्म देने वाले को हुक्म मानने वाले से श्रेष्ठ समझेंगे
या फिर हुक्म मानने वाले को हुक्म देने वाले से बेहतर कहेंगे
इस तरह धीरे-धीरे एक दिन
हम भी हो जाएंगे पूर्णकालिक मालिक, नौकर, बागी, प्रशंसक या चाहे जो
लेकिन पुख्ता हुक्म के गुलाम
इसलिए जिन्हें यह मालूम हैं कि उनके भीतर जरा भी है खिलाफत की आग
खड़े होना होगा उन्हें सबसे पहले अपने भीतर के सामंतवाद और अपने भीतर के सामंत के खिलाफ