रविवार, 24 सितंबर 2017

नाव, नाविक और समुद्र

समग्र चैतन्य - पुष्पेन्द्र फाल्गुन




मित्र ने कहा, ‘समंदर कितना भी ताकतवर हो, बिना छेद की नाव को नहीं डुबो सकता है.’
तो मैंने एक कहानी की कल्पना की. कहानी में नाव, नाविक और समंदर (समुद्र) मुख्य किरदार थे.
एक बार सात नाविकों का दल विशेष अभियान पर समुद्र में भेजा गया. भेजने वाले किनारे पर रुक उन नाविकों की वापसी का इंतजार कर रहे थे. उन्हें, भेजे गए नाविकों में से एक नाविक अगले दिन समुद्र की लहरों से टक्कर लेकर किनारे की तरफ आने के लिए हाथ-पैर मारता हुआ दिखाई दिया, बचाव दल भेजकर उस नाविक को बचाया गया. किनारे लाए जाने पर उसने बताया कि अभियान पर निकलने के बाद जब शाम हो रही थी, तब नाव समुद्री तूफ़ान की चपेट में आ गयी, तो वह नाविक नाव से कूद गया और किसी तरह अपनी जान बचाने में सफल रहा. उस नाविक की बात सुनकर, अभियान के नियोजनकर्ताओं को दुःख हुआ, उन्हें लगा कि अभियान पर भेजे गए अन्य छह नाविक शायद तूफ़ान की भेंट चढ़ गए. वे सभी उदास बैठे थे कि उन्हें सुमद्र की लहरों पर दूर एक व्यक्ति डूबता दिखाई दिया. तुरंत बचाव दल भेजा गया, मालूम हुआ कि अभियान पर गए नाविकों में से ही वह एक था. उसे भी बचाकर लाया गया. उसने बताया कि समुद्री तूफ़ान देखकर एक साथी नाव से कूद गया, लेकिन हम छह नाविकों ने मिलकर अपनी सूझ-बूझ से उस तूफ़ान का मुकाबला किया और आगे बढ़ गए. कुछ और आगे जाने पर समुद्री डाकुओं ने हमें घेर लिया और हम पर गोलियां बरसाने लगे, तो मैंने नाव से कूदकर अपनी जान बचायी. उसके अनुसार शेष पांच नाविक समुद्री डाकुओं की गोलियों का शिकार हो गए होंगे.
अभियान पर भेजने वाले फिर उदास हो गए. अगले दिन अभियानकर्ताओं ने वहां से तंबू उखाड़कर अपने-अपने घरों को ओर लौटने का निश्चय किया. तंबू उखाड़े जा रहे थे कि इतने में एक और नाविक समुद्र की लहरों के झकोलों के साथ किनारे पर फेंका गया. किसी तरह उसे भी बचाया गया. उसने बताया कि समुद्री डाकुओं की गोलियों से नाव में एक छेद हो गया था. नाव के डूबने का खतरा बन गया था, इसलिए मैंने कूदकर अपनी जान बचायी. अभियानकर्ताओं को शेष चार साथी नाविकों के लौट आने की उम्मीद बिलकुल नहीं थी. लिहाजा, अभियानकर्ताओं ने समुद्र को छोड़, शहर का रुख कर लिया.
समय बीता. लगभग दो साल बाद, अभियानकर्ताओं को मालूम हुआ कि उनके द्वारा अभियान पर भेजे गए शेष चार नाविक समुद्र किनारे देखे गए. अभियानकर्ता सदलबल समुद्र किनारे पहुँचे. उन्होंने देखा कि शेष रह गए चारो नाविक जीवित हैं और सकुशल अभियान समाप्त कर लौट आए हैं. चारों तरफ ख़ुशी की लहर दौड़ गयी. इस ख़ुशी की लहर ने अभियानकर्ताओं को प्रसन्न कर दिया. यही तो अभियान था. किसी तरह दो साल तक नाव को बचाए रखा जाए. अभियानकर्ताओं ने उन शेष चार नाविकों से पूछा, ‘डर नहीं लगा डूबने का, नाव में छेद हो गया था?’
उन चार में से एक ने कहा, ‘डर कैसा!’ दूसरे ने कहा, ‘हम, लोगों का डर दूर करने निकले थे, तो क्या खुद ही डरकर भाग खड़े होते!’ तीसरे ने कहा, ‘जमाने के डर को दूर करने से पहले हमें अपना डर दूर करना था.’ चौथे ने कहा, ‘और इस डर को जीतने का एकमात्र तरीका था, अभियान को जारी रखना...’
एक शहरी ने पूछा,’नाव के छेद से समुद्र का पानी तो आया होगा न?’
‘हाँ, आया था,’ उन चारो नाविकों ने कहा, ‘मगर हमने बारी-बारी से छेद को बंद करने की कोशिश की और इस प्रयत्न के बावजूद जो पानी छेद से रिसकर नाव में आता रहा, बाकी तीन नाविक उसे नाव से बाहर उलीचते रहे...’
देश नाव है, नागरिक नाविक और समुद्र इस देश की राजनीति...

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