सोमवार, 27 जून 2011

काका का एल्बम

कल इसी कविता को किसी और तरीके से लिखा था. आज  'कविता लेखन' पर अग्रज कवि-आलोचक नन्द भारद्वाज जी के मार्गदर्शन के बाद कल की कविता 'जय भीम कावडे काका, जय भीम' को कुछ इस तरह लिखा है. आप सुधीजनों से  तवज्जों चाहता हूँ ...



तनि-तनि से पंख हैं उस सफ़ेद तितली के
जिन्हें मासूमियत से हिलाकर प्रदर्शित करती है वह अपना प्रेम
हालांकि सैकड़ों पैरों वाला वह जंतु उसे कतई नहीं पसंद 
लेकिन क्या करे काका के एल्बम में उसके लिए जगह ही यहाँ थी

काका के एल्बम में
नाचते हैं मयूर
गूंजते हैं भौरे
सहमकर टंगा पड़ा है एक सफ़ेद उल्लू 
और माजरे को समझने की कोशिश करता एक हिरन शावक इधर ही देखर रहा है

कुछ फूल और पत्तियों 
और किस्म-किस्म की औषधियों की गुफ्तगूँ 
आपको सुननी ही पड़ेगी साहेबान यदि आप देखेंगे काका का एल्बम तो

काका के एल्बम में सबकुछ अच्छा-अच्छा और सुन्दर नहीं है
कुछ बदसूरत और वीभत्स चेहरे भी देखने पड़ेंगे आपको
ये उन चेहरों के अंतिम अवशेष हैं
जिन्हें कुचलकर भाग गए हैं बस-ट्रक जैसे अति भारी वाहन
या कर-जीप जैसे कम वजनी वाहन 
या फिर मोटर साइकल या स्कूटर जैसे हल्की गाड़ियाँ  

इन चेहरों की पहचान बनाए रखने की ठोस वजह है काका के पास
उस वजह को आप देख पायेंगे उनकी आँखों में जब वे लम्बी-लम्बी उसाँसे भर
एल्बम के एक-एक पन्ने को इस तरह पलट रहे होंगे
जैसे कोई पलटता है जिंदगी की किताब पृष्ठ दर पृष्ठ

काका के एल्बम में खुशियों में भींगी आँखें
और मौत के मुंह से लौटकर आने पर किया जाने वाला 
कसावट और तरावट भरा जोरदार आलिंगन भी है
काका के एल्बम के इस हिस्से का हर क्षण 
उनके अनुभवों और कहानियों से उसी तरह जीवंत है
जैसे दो साल के बच्चे की तुतलाती बोली से जीवंत होती है जिंदगी

काका को पसंद नहीं है
किसी का डूब जाना
फिर वह डूबना
रेत घाट में ठेकेदारों द्वारा
नियमों को धता बताकर किये गए २०-२० फुट के गड्ढे में किसी नौजवान का डूबना हो
कि किसी मवाली की अश्लील टिप्पणियों से शर्म से फिसलती किसी स्त्री का डूबना हो
काका किसी को डूबने नहीं देते
घर से लाई गई रस्सी के सहारे वह बचाते हैं नदी और गड्ढे में डूबने वालों को
नीयत से लाई गई हिम्मत के सहारे वह बचाते हैं नारियों के स्वाभिमान
और उनके भीतर टूटते समाज और सदाचार को

काका के एल्बम में नहीं है उनकी रस्सी और नीयत का एक भी चित्र

नहीं है
'जय भीम कावडे काका, जय भीम' की अनुगूंज
जिसे सुना जा सकता है सिर्फ तभी
जब आप हों काका के साथ पल-दो पल ही सही

काका के एल्बम में नहीं है
वह धूप और छाँह
जिसे भोगा है उन्होंने अविरत ५६ साल
उस बहन की वेदना और ममता भी नहीं
जिसने अपने छोटे भाई-बहनों के लिए नहीं सजाई अपनी मांग
लौटा दिए अपने सपनों को बैरंग

काका के एल्बम में नहीं हैं
वे आशीष और दुआएं
जो बटोरी है उन्होंने हर शै-हर दिन
वे अफ़सोस भी नदारद हैं काका के एल्बम से
जिन्हें पिया है काका ने कई-कई लोगों के आंसुओं के साथ

काका के एल्बम में नहीं हैं मैं और आप

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