शनिवार, 5 मार्च 2011

मुक्ति की कामना



दाल दरते हुए
सोचती हैं
संजय गनोरकर के
शिल्प की सारी महिलायें
कि
पुरुष लिंग ही
असल में उनके
समस्त विपदाओं की जड़ है
और यह भी सोचती हैं
कैसे इस जड़ से पाएं 
मुक्ति

दाल दरती हुई महिलाओं को देखकर
मैं सोचता हूँ
कि क्या वे सचमुच
यही सोच रही होंगी.....

(संजय गनोरकर अमरावती में रहते हैं और देश के प्रतिष्ठित शिल्पकार हैं)

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